14 सितंबर को हुई इस घटना के बाद बेटी को जेएन मेडिकल कॉलेज लाकर भरती कराया गया। दो दिन के इलाज के बाद उसे हालत नाजुक होने पर वेंटिलेटर पर लिया गया। इसके बाद 26 सितंबर को बेटी को हायर सेंटर एम्स ले जाने का सुझाव मेडिकल कालेज के डॉक्टरों ने दिया। इस खबर पर हाथरस पुलिस के अधिकारियों से स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने वार्ता की। परिवार से बात हुई, मगर परिवार की ओर से यह कहकर सहमति नहीं दी गई कि वहां हम अकेले कैसे कर पाएंगे? उस समय एम्स के डॉक्टरों से बातचीत भी की गई। वहां से इशारा भी मिल गया कि इसे लेकर आ सकते हैं। इसके बाद अचानक 28 सितंबर की सुबह उसे एम्स रेफर किया गया। मगर एम्स के बजाय हाथरस जिला पुलिस उसे सफदरजंग लेकर पहुंच गई। वहां अगले 24 घंटे में ही उसने दम तोड़ दिया।
हाथरस की बेटी के उपचार के मामले में जेएन मेडिकल कॉलेज के द्वारा उसको एम्स दिल्ली के लिए रेफर किया गया था। क्योंकि जेएनएमसी का हायर रेफरल सेंटर एम्स है। वह सफदरजंग कैसे पहुंची इस बात का जवाब हाथरस जिला प्रशासन दे सकेगा। जहां तक पीड़ित को रेफर किए जाने में लगे समय का सवाल है तो यह फैसला किसी भी मामले में प्रमुख तौर से परिजनों के द्वारा लिया जाता है। डॉक्टर परिजनों को परामर्श दे सकते हैं, लेकिन अंतिम तौर पर फैसला परिजनों को लेना होता है। बिना डॉक्टर के परामर्श दिए भी परिजन अपनी ओर से फैसला ले सकते हैं। इसके साथ ही मेडिकल कॉलेज से जारी मेडिकल रिपोर्ट केवल जांच अधिकारी को या अदालत में प्रस्तुत की जाती है। अन्य किसी तीसरी अथॉरिटी को यह रिपोर्ट नहीं दी जाती है। पीड़ित से दुष्कर्म होने का जहां तक सवाल है तो जिला प्रशासन में इसके लिए एक टीम गठित की थी। इस टीम में अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है। इस बनाई गई टीम में मेडिकल कॉलेज की कोई भी भूमिका नहीं है।- प्रोफेसर शाहिद अली सिद्दीकी प्रिंसिपल जेएन मेडिकल कॉलेज
हाथरस की युवती का होना था एक टेस्ट, जिस की सुविधा अलीगढ़ में नहीं है
हाथरस की बेटी 14 दिन मेडिकल कॉलेज में रखे जाने और उसे दिल्ली या अन्य कहीं पर बेहतर उपचार के लिए रेफर न किए जाने पर अब सवाल उठ रहे हैं। यह भी बात निकल कर आई है कि युवती का मुंह में पाइप डाल कर एक विशेष किस्म का एमआरआई होना था जो सुविधा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है। माना जा रहा है कि उपचार में इस प्रकार की उदासीनता भी बिटिया की जान चले जाने का एक कारण बनी।
मंगलवार को नगर निगम में नगर सफाई मजदूर संघ के पदाधिकारियों ने यह बात उठाई थी। वहीं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इंजीनियर आगा यूनुस ने कहा कि बड़े अफसोस की बात है कि 14 सितंबर में जीवन के लिए संघर्ष करती पीड़ित और बेहाल परिवार मेडिकल कॉलेज में जूझता रहा। उन्होंने कहा कि परिवार की रिश्तेदार के साथ खुद डॉक्टर से मिला। डॉक्टर ने भी बताया एक जांच जो मेडिकल कॉलेज में है ही नहीं । मुंह में पाइप डालकर एमआरआई होना जरूरी बताया गया। लेकिन यह जांच मेडिकल कॉलेज और संभवत अलीगढ़ में उपलब्ध नहीं है। देश की बेटी जिसको सर्वोच्च इलाज प्रथम दिन से मिलना था उसमें देरी क्यों हुई?
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